Wednesday, March 15, 2017

पहले मायावती और अब केजरीवाल

युपी विधानसभा चुनाव परिणामों का इतना गहरा असर बसपा पर हुआ कि मायवतीने इसे इवीएम का घोटाला करार दिया और दोबारा चुनाव की मांग की.

२७ साल युपी बेहाल का नारा देकर राहुलने खाट यात्रा आरंभ की थी. काँग्रेस ने युपी के मुख्यमंत्री पदके लिए शीला दिक्षित का, जिसपर दिल्ली के हारकी मुहर लगी थी, नाम घोषित किया. युपी चुनावोंको जीतकर राहुल का नेतृत्व सिद्ध करना यह काँग्रेस की प्राथमिकता थी. लेकिन खाटयात्रा के दरम्यान काँग्रेस को इस बातका अंदाजा आया की २७ साल युपी बेहाल की कैच लाईन, शीला दिक्षित का नाम या खाट यात्रा इनमेसे एक या सारी बातोंको मिलाकर भी युपी चुनाव जीतना असंभव है.

अगर हार का मुह देखना पडा तो राहुलजी के भविष्य का क्या होगा ? इस प्रकार चुनाव जीतना या राहुलजी का राजनीतिक भविष्य बचाना इनमे किस बातको और कैसे चुना जाए इसका निर्णय न होनेके कारण काँग्रेस दुविधा मे पडी थी.

इसी दरम्यान सपा मे गृहकलह आरंभ हुआ. मुलायमसिंह के दूर होते कुछ हद तक पार्टी कमजोर होनेका एहसास अखिलेश को हुवा और वह कमी राहुलजी को गले लगाकर कुछ मात्रामें पुरी करनेका उन्होने प्रयास किया. लेकिन २०१२ मे २७ सीट लानेवाली काँग्रेस २०१७ मे मुश्किल से ७ सीट ला पायी और अपनी हारके साथ ही सपाके हार का भी बडा कारण बनी.

मायावतीने एकतरफ इवीएम के आड अपनी हार छिपाने का प्रयास किया तो राहुलजी ने आरोप किया कि धनशक्ती का प्रयोग हुवा. अखिलेश ने बयान देते समय किसीपर दोषारोपण नही किया बल्कि लोगोंको हमारा काम पसंद नही आया होगा ऐसा तर्क दिया.

तात्पर्य यह है कि भाजपाकी भारी जीतपर विपक्ष से आशंका जताई जा रही है. आश्चर्य तब लगा जब मायावती के सूरमे सूर मिलाते हुए आज केजरीवालने भी आनेवाले दिल्ली नगरनिगम के चुनाव मे पेपर बैलेट की मांग की है. दिल्ली विधानसभा के न भुतो यशके पश्तात आप पार्टी गत दो वर्षोमे किसीभी चुनाव मे वह करिश्मा दोबारा नही दिखा पायी. अपनी नाकामी को छुपाने का बहाना ढूंढने वाले आप को मानो मायवतीने जैसे राह की किरण बताइ हो.

इवीएम के द्वारा कोई घोटाला हो नही सकता. हर एक मतदान केंद्र मे प्रत्यक्ष मतदान प्रक्रिया आरंभ होनेसे पहले हर एक राजनैतिक पार्टी के प्रतिनिधि के सामने ट्रायल वोटिंग की जाती है. मशिन का चलन ठीक है एस बातसे सभी राजनैतिक पार्टीया आश्वस्त होनेके बादही मशिन्स क्लियर करके सील की जाती है और फिर उसके बाद मतदान प्रक्रिया आरंभ होती है.

आयएएस पद संभाले हुए केजरीवाल भी यह सारी बाते बखुबी जानते है लेकिन दो वर्ष पूर्व  दिल्ली विधानसभा की भारी जीत के बाद अब अप्रैल मे आनेवाले नगरनिगम चुनावमे जीत की आशंका होनेके कारण आजसेही इवीएम मशिनपर निशाना साधे हुए है. जाहीर है गत दो वर्षोमे दिल्लीवासीयोंकी अपेक्षाएं पुरी करनेमे आप नाकाम रही. अपनी नाकामयाबी का कारण या तो केंद्र सरकार या नायब राज्यपाल को बताया जाता था.  अगर दिल्लीकी जनता आप के कामसे खुष रहती तो पंजाब मे जीत आसान होती थी. लेकिन पंजाब मे भारी सफलताका दावा करनेवाले आप को, केवल २० सीटे प्राप्त हुइ. क्या पंजाब के इस परिणामोमे दिल्ली के शासन की असफलता प्रतिबिंबित नही हुइ है ?

अगर किसी विधानसभा चुनावमे भाजप की हार या जीत होती है तो उसे केंद्र सरकार के काम के प्रति मतप्रदर्शन माना जाता है. इसी तर्क के आधारपर दिल्लीके सरकारके काम के प्रती जनमत प्रतिकूल होनेके कारण पंजाब मे आपको जनताने नकारा यह निष्कर्ष गलत कैसे हो सकता है ?

और इसी बातका भय मनमे रहनेके कारण केजरीवालजी आज इवीएम को आशंका के कटघरे मे खड़ा कर रहे है ताकि अगर दिल्ली नगरनिगम चुनाव हारते है तो दोष उनके नेतृत्वपर न आते हुए इवीएम पर आए और उनकी नेतागिरी बनी रहे.

आंदोलन, निदर्शन और प्रदर्शन के माध्यमसे एवम् श्री अन्ना हजारे की छत्रछायामे केजरीवाल के नेतृत्व गुण और संघटन कौशल जनता के सामने उभरकर आए. अपने बलबुतेपर श्री अन्ना हजारेजी के विरोध के बावजूद केजरीवाल ने राजकीय क्षेत्र मे प्रवेश का निर्णय लिया और आप की स्थापना हुई.

अपने आरंभिक कालमे हर निर्णय नुक्कड सभामे आम जनताके सामने लेनेके परंपराकी नीव उन्होने डाली. सत्तामे रहनेके पश्चात भी उनकी आंदोलनकारी प्रवृत्ती एवम् प्रतिमा कायम रही. लोगोंको दिए चुनावी आश्वासनोंकी पूर्ती करना जैसे मुश्किल दिखाई दिया वैसे केंद्र सरकार, मोदी, दिल्ली नायब राज्यपाल इनपर दोषारोपण का सिलसिला जारी रहा. नुक्कड सभाएं मानो जैसे एक दिखावा था.

हर किसी बातको राजनीतिक दृष्टि से देखना यह सकारात्मक राजनीति नही कहलाती. किसीभी उचित निर्णय की समीक्षा हर समय राजनीतिक फायदे की नजरसे करना इसे आम जनता स्वीकार नही करती.  अच्छे एवम् जनता के हितकारी निर्णययोंको सराहना और गलत धोरण के विरुद्ध आवाज उठाना यह सशक्त विरोधी दल के लिए आवश्यक गुण होते है.

स्वच्छता अभियान से लेके अठारह हजार गावोमे बिजली पहुचाना, गरीबोंके घर गॅस कनेक्शन देना जैसे कार्य को सराहते हुए केजरीवाल केंद्र की गलत नितियोंपर प्रहार करेंगे तो वो जनता की, आम आदमीकी लड़ाई लड रहे है ऐसा विश्वास उनके प्रति निर्माण आजभी हो सकता है. अन्यथा जैसे राहुलजी जनमानसमे एक मजाक का विषय बने हुए है वैसे केजरीवालजी की प्रतिमा एक तिरस्करणीय व्यक्ति बनकर रहनेका धोखा है.

बिंदुमाधव भुरे, पुणे.

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